Wednesday, November 10, 2010

एक पति की सौ पत्नियाँ

आज एक समाचार पत्र पढ रहा था तो एक बात बडी खटक गई. लेख प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी के बारे में था. लेखक का कहना था कि प्रधान-मंत्री से बडी उम्मीदें थीं, लेकिन वे यह नहीं कर पाये या वह नहीं कर पाये. पढ कर बडा विचित्र लगा.
आप न वह प्रतियोगिता देखी होगी जिसमें आदमी को कमर तक एक बोरी में डाल कर कमर पर उसे बांध दिया जाता है. अब उस से दौडने को कहा जाता है. कोई भी व्यक्ति दो कदम से आगे नहीं बढ पाता है. दर्शक लोग तमाम तरह की बाते कहते हैं कि ऐसा करो या वैसा करो. कुछ बेवकूफ आप बोरियों में कूद जाते हैं, कमर पर बंधवा लेते हैं  और दो कदम के बाद ऐसे गिरते हैं कि आगे कभी किसी को कोई सुझाव न देने की सोच कान पकड लेते हैं.
यह इस देश की विडंबना है कि जिस आदमी को भी जिम्मेदारी के पद पर बैठा दिया जाता है उसे कोई भी निर्णय लेने के लिये सौ लोगों के अनुमति की जरूरत होती है. दायें जाओ तो एक सहयोगी पार्टी नारज होती है, बायें जाओ तो दूसरी, सीधे जाओ तो तीसरी. कहीं न जाओ तो जनता नाराज होती है. अफसोस यह है कि सहयोगी न हों तो सरकार नहीं “बन” सकती, लेकिन सहयोगी हों सरकार नहीं “चल” सकती! हां किनारे खडे लोग एक से एक सुझावे देते जाते हैं क्योंकि वे कभी पाले में नहीं उतरे हैं. सुझाव देने के लिये न तो अकल की जरूरत होती है न समझ की......