Wednesday, June 01, 2011

हर एक्सपीरिएंस कुछ न कुछ बोल जाता है




कल दोपहर को एक भिखारी आया जिसे मैं ने दो रुपये दिये. उसने झुक कर ऐसा प्रणाम किया जैसे मैं ने सारी दुनियां उसकी झोली में डाल दी हो. भीख को अपना हक मानने के बदले उसे एक एहसान मानने वाले भिखारियों को मैं काफी उत्सुकता से देखा करता हूँ. कल भी ऐसा ही हुआ.


खिडकी से देखा तो वह तो फाटक के बाहर बैठ पैसा गिनता दिखा. पास जाकर देखा तो कम से कम सौ दोसौ रुपये का अनुमान बैठा. मैं चूँकि सिक्कों का शौकीन हूँ, और चूँकि लोग घर मे इधरउधर पडे पुराने सिक्के भिखारियों को दे देते हैं अत: उन सिक्कों की विविधता को सोच कर मैं ने पूछा  कि सिक्कों के बदले नोट दे दूँ तो उस ने मना कर दिया.
कारण पूछा तो बोला कि (मेरे घर से लगभग 10 किलोमीटर दूर) एक होटल वाला उससे सारे खुले पैसे लेकर नोट दे देता है और हर 100 रुपये पर उसे एक खाना मुफ्त देता है. मुझे एकदम लगा कि दोनों ही लोग अकलमंद हैं. एक आदमी जिसके पास न आगे कुछ है न पीछे उसे 10 किलोमीटर चलने में कोई तकलीफ नहीं है. भिक्षाटन भी हो जाता है, 10 किलोमीटर की कवायद से शरीर को भी फायदा होता है. अंत में 21 रुपये का खाना मुफ्त मिल जाता है, कमाये पैसे उसकी जेब में सुरक्षित रह जाते हैं.
होटल वाला भी अकलमंद है क्योंकि बैंक का चक्कर लगाये बिना उसे इतने खुले पैसे मिल जाते हैं कि एक चाय पीने के बाद कोई ग्राहक बीस का नोट दे दे तो भी बिन झुंझलाये उसे बाकी पैसे दे सकता है. किसी होटल में दोचार भिखारियों को दोपहर का खाना खिला देने से उनको कोई अतिरिक्त खर्चा नहीं बैठता है, खासकर जब भिखारी को खाना सिर्फ आखिर में दिया जाता है.
काश हम में से हरेक अपने जीवन की समस्याओं को इतने व्यावहारिक तरीके से सुलझा पाता!!
Tuesday, March 01, 2011

बजट से हमे क्या मिला....

प्रणब जी के सारे वादे खोकले साबित हुए लेकिन बजट कई मायनो में आछा साबित हुआ. मार्केट के विश्लेषको का मानना है की बजट में जो कुछ छूट मिली है वो मार्केट के हिसाब से देखते है कैसे :

मिडल क्लास में रहने वालो का सालाना बजट 1 से जयादा होता है ऐसे में परिवार के सदस्य 4 या 5 हुए तो इसकी कीमत 2 लाख पहुच जायगी और आम जनता बजट से दूर रहे जायगी.

बजट किसके लिए होता
क्या सिर्फ बजट अपर या लोवर क्लास के लिए होता है? 
इस बार बजट में सिर्फ दिखा इन्वेस्टर्स का बोल बाला 


बजट क्या होता है 
बजट सिर्फ इन्वेस्टर के लिए होता है विदेशी मूत्र का आदान प्रदान ही बजट है. देश में रोजाना उनेम्प्लोय्मेंट की सखया बदती जा रही है लेकिन बजट में सिर्फ दिखा की विदेशो में निवेश कैसे किया जाय ऐसे में बजट हमसे दूर हुआ  

भारत में किसी भी डिपार्टमेंट में देख लो पक्की या कच्ची नौकरी की बजाये ठेके की नौकरी जायदा मिल रही है. चाहे वे कही भी हो ऐसे में यौन्ग्स्टर को उम्मीद थी की ठेके को बंद करने का प्रावधान चलाया जायगा लेकिन ऐसा  बिलकुल भी नहीं हुआ 

आखिर क्या हम ठेके की नौकरी ही करके ?????????

बजट से हमे क्या मिला....