Thursday, September 23, 2010

अब सच में मुन्नी हुयी "झंडूबाम"./.ये आज की बात नहीं ..... रोज की मोहब्बत हैं !!











फिल्‍म ‘दबंग’ के हिट गाने ‘मुन्‍नी बदनाम हुई... मैं झंडू बाम हुई डार्लिंग तेरे लिए’ में अपने उत्‍तेजक लटकों-झटकों से दर्शकों को मदहोश कर देने वाली ‘मुन्‍नी’ यानि मलाइका अरोड़ा खान सचमुच में झंडू बाम होने जा रही हैं। कहने का मतलब ये है कि मलाइका अब झंडू बाम का ब्रांड अंबेसेडर बनने जा रही हैं।


मीडिया में आईं खबरों के मुताबिक ये फैसला उस विवाद की परिणति है, जिसमें ‘झंडू बाम’ बनाने वाली कंपनी ‘झंडू बाम फार्मास्‍यूटिकल वर्क्स लिमिटेड’ ने फिल्‍म ‘दबंग’ के निर्माता अरबाज खान पर मुकदमा दर्ज किया था कि गाने के माध्‍यम से उसके ब्रांड की छवि खराब की जा रही है।


खबरों के मुताबिक, अरबाज खान प्रोडक्‍शंस (एकेपी) और झंडू बाम बनाने वाली कंपनी ‘झंडू बाम फार्मास्‍यूटिकल वर्क्स लिमिटेड’ के बीच कोर्ट के बाहर सुलह हो गई है। इस संबंध में अरबाज खान का कहना है, ‘सबकुछ न्‍यायालय के बाहर मित्रतापूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया है। इसके‍ लिए मैं विज्ञापन निर्माता प्रह्लाद कक्‍कड़ को शुक्रिया अदा करता हूं। वे दोनों पक्षों को जानते हैं और उन्‍होंने इस मामले को निपटाने के लिए बातचीत की पहल की।’


अरबाज ने आगे कहा, ‘यह दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद रहा। हम उनकी कंपनी के साझ गठबंधन करेंगे। मलाइका उनकी ब्रांड अंबेसेडर होगी।
Wednesday, September 22, 2010

जागरूकता की जरुरत अशलीलता की नहीं

जैसा की हम सब जानते है की जनसख्या वृधि पर अंकुश लगाने के लिए टी. वि सिनेमा से लेकर पत्रिकाओ तक में तरह-तरह के उपाय बताये जाते है I इसके बावजूद जनसख्या कम होने के बजाए लगातार बढती जा रही है जबकि सच्चाई यह है की पूरे देश में आज भी सैकड़ो भ्रूण हत्याए भी प्रतिदिन होती है I
इसके बाद भी देश की जनसख्या जिस तीव्र गति से बढ़ रही है उसको देखते
हुए इस बात से इंकार नही किया जा सकता की परिवार नियोजन के लिए जो भी उपाय
अपनाय गये है सब निष्प्रभावी साबित हो रहे है I किसी भी प्रचार-प्रसार के
नाम पर इतनी अशलीलता परोसी जा रही है जिसका कोइ जवाब नही I इस्थ्ती तब
विचित्र हो जाती है जब परिवार के साथ बैठकर आप टी .वि देख रहे होते है I
परिवार नियोजन के विज्ञापन इतने गंदे तरीके से परोसे जाते है की लोगो को
टी .वि स्क्रीन से नजरे हटाना पड़ता है I इस्थ्ती तब और बतर हो जाती है
जब आप का नादान बच्चा आपसे उस विज्ञापन के विषय में कुछ विचित्र सा प्रश्न
पूछ लेता है और आप जवाब नही दे पाते I सभी विज्ञापन विभाग को चाहिए की
विज्ञापन ऐसे बनाए जिससे जागरूकता फैले अशलीलता नही
I
Sunday, September 19, 2010

जहाँ बारात में दूल्हा नहीं जाता

 अजब गजब हैं हिमाचल के लाहुल घाटी की विवाह परम्परा
हिमाचल प्रदेश पुरातन संस्कृतियों और परम्पराओं का प्रदेश है. प्रदेश के बिभिन्न क्षेत्रों की विवाह परम्पराएँ भी अलग अलग हैं. लेकिन प्रदेश के कवायली कहलाये जाने bale लाहुल स्पीती की रस्मे और भी अनूठी हैं.भले ही आधुनिकता के इस दौर में पुरानी रस्मे धीरे धीरे आधुनिकता का लबादा ओढ़ रहीं हैं लेकिन आज भी यहाँ कई रिवाज़ जीवंत हैं हिमाचल के दुर्गम कबायली जिला लाहुल स्पीती में शादी की रस्में अलग अलग हैं, यहाँ कई गाँव ऐसे भी हैं जहाँ बरात में दूल्हा नहीं जाता है बल्कि दुल्हे की बहन दुल्हन के घर कुछ निशानियाँ ले कर जाती है. शीत नारुस्थल के नाम से जनि जाने बाली इस घाटी के जिला मुख्यालय केलोंग सहित गाहर घाटी के बिलिंग, युरिनाथ, रौरिक, छिक्का, जिस्पा अदि कई ऐसे गाँव हैं जहाँ रात भी निकलती है,बाद्ययंत्र भी बजते हैं,नाच गान भी होता है लेकिन यहाँ दुल्हन लाने के लिए दूल्हा बारात संग नहीं जाता है.क्षेत्र के लोगों के अनुसार इस घाटी की छोटी शादी में दुल्हे की बहन ही दुल्हे की कुछ निशानियाँ ले कर दुल्हन लाने की रसम अदा करती है. घटी की मियाद. तिणन,pattan, गाहर अदि घाटियों की शादी की रस्में मेल भी खाती हैं. इस घाटी में विवाह की सबसे पुराणी रसम गंधार्भ विवाह है. इस घाटी में न तो कुइंडली मिलई जाती है और न ही गृह चाल देखने का रिवाज़ है.भले ही देश के कई हिस्सों में भादों महीने को काल महीने की संज्ञा दी जाती है और इस महीने विवाह शादियों जैसे शुभ कार्य बरजित होते हैं लेकिन इस घाटी में जयादातर शादियाँ इसी महीने ही होती हैं. घाटी में अपनी पसंदीदा लड़की उठा कर ले जाने की परमप्र पुरानी है.लड़की उठा ले जाने के वाद लडको के परिजन यहाँ मक्खन लगी शराब की बोतल ले कर लड़की बालों के घर जाते हैं . यदि लड़की के परिजन इस बोतल को खोलते हैं तो रिश्ता स्वीकार्य होता है यदि नहीं तो इसे नमंजूर माना जाता है. इस शादी की मान्यता के लिए कई बार प्रयास किये जाते हैं . कई बार इस शादी को अगली पीढ़ी ही मान्यता देती है.घाटी में इस रिश्ते की मजूरी को कई साल भी लग जाते हैं और ऐसी शादियों के निर्वहन में बच्चों ही नहीं बल्कि पोतो के शरीक होने के भी कई प्रमाण मिलते हैं. भले ही घाटी में शिक्षा के बिस्तार के साथ साथ लोग दुसरे क्षत्रों की रस्मों को अपना रहे हों लेकिन यह भी के सच्चाई है की घाटी में यदि ऐसी शादियों के टूटने के प्रमाण मिले तो बे अपवाद ही हो सकते हैं. दहेज़ जैसी बुराई से कोसो दूर इस वैवाहिक परम्परा को आज की पीढ़ी त्यागती जा रही है. ऐसे में घाटी के लोगों के लिए भी शादियाँ अबमहंगी होती जा रही हैं